
हर वर्ष बढ़ जाती है शिवलिंग की एक सेंटीमीटर ऊंचाई, खेत में हल से जौताई करने के दौरान निकला था शिवलिंग,
400 साल से अधिक पूर्व है गांव में मंदिर स्थापित,आज भी शिवलिंग पर है हल का निशा
पिलखुवा। (फ़ॉक्सलेन न्यूज़) उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ क्षेत्रांगत पिलखुवा के ग्राम दहपा में स्थित प्राचीन शिव मंदिर की दूर-दूर तक ख्याति फैली हुई है। आस्था और भक्ति के इस केंद्र पर पहुंचकर कांवड़ यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में शिवभक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करते है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग को भगवान शिव का साक्षात रूप माना जाता है। जिसके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर दराज से आते है।
प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी मनोज शर्मा ने बताया कि गांव दहपा के मंदिर का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है। मंदिर में स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है। जो जमीन से निकलकर प्रकट हुआ है। मनोज शर्मा बताते है कि गांव के रहने वाले भिवानी सिंह खेत में हल चला रहे थे। इस बीच हल एक पत्थर से टकराकर रुक गया और खेत जोतने वाले बैल की जोड़ी बेसुध होकर जमीन पर गिर गई थी। उसी रात को भिवानी सिंह के सपने में आवाज सुनाई दी कि वह खेत को छोड़ दें।
भिवानी सिंह ने दूसरे दिन सुबह खेत में जाकर देखा तो उस स्थान पर शिवलिंग दिखाई दिया था। शिवलिंग पर हल का लगा निशान भी था।

हर वर्ष बढ़ जाती है शिवलिंग की एक सेंटीमीटर ऊंचाई
गांव दहपा के प्राचीन शिव मंदिर में शिवलिंग विराजमान है। जिसमें भगवान शिव का साक्षात रूप विराजमान है। शिवलिंग की ऊंचाई हर साल एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है। ग्रामीण बताते है कि भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए श्रद्धालु दूर दराज से आते है। जो भी भक्त भगवान शिव से सच्चे मन से मन्नत मांगता है। भगवान शिव उसकी मन्नत को पूरा करते है।
भगवान कृष्ण की तीसरी बारात मंदिर में रूकी थी
दिल्ली की खोज नामक किताब में जो इस समय दिल्ली लाइब्रेरी व दिल्ली यूनीवर्सिटी में रखी हुई है। उसमें बताया गया कि भगवान कृष्ण की तीसरी शादी कालिन्दी से हुई थी। बारात मुरारी गांव (वर्तमान में बुराडी) से चलकर खण्डेश्वर नाथ मंदिर (आज के समय में दहपा के नाम से जाना जाता है) वहां बारात को रोका गया था। बारात इतनी विशाल थी कि जिसका इंजताम हापुड़ तक पहुंच गया था। जिसको उस समय सारी सगली स्थान कहा गया था। जिसको (आज गांव सबली के नाम से जाना जाता है) उस स्थान पर बारात पूर्ण हुई थी।
सावन माह में दूर से आते है श्रद्धालु
सावन माह का पर्व हिन्दू धर्म में बड़ा पवित्र माना जाता है। सावन के सोमवार को दूर से श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते है। शिवरात्रि के दिन मंदिर में लाखों कांवड़िएं भगवान शिव का जलाभिषेक करते है। पुजारी मनोज ने बताया कि शिवरात्रि से चार दिन पूर्व शिव भक्तों का मेला शुरू हो जाता है। कांवड़ मेले के दौरान मंदिर परिसर जय भोले के जयकारों से गूंज उठता है। प्राकृतिक शिवलिंग और उस पर हल का निशान आर्कषण का केंद्र है। भीड़ को देखते हुए मंदिर समिति सभी व्यवस्था करती है। पेयजल और पंखे लगाए जाते है।
गंगा जल का केंटर आते है मंदिर
पुजारी मनोज शर्मा ने बताया कि सोमवार को भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु मंदिर आते है। इसके लिए मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के बाहर गंगा जल का केंटर लाकर खड़ा कर देते है। श्रद्धालु केंटर से गंगा जल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते है। वहीं शिवरात्रि पर भी गंगा जल का केंटर खड़ा होता है। जिससे श्रद्धालु गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकें।
